Advocate Vikesh Singh Negi | अपर जिला जज मनोज गर्ब्याल के हाथों से एडवोकेट विकेश सिंह नेगी हुए सम्मानित -जानिए खबर
Advocate Vikesh Singh Negi honored by Additional District Judge Manoj Garbyal
अपर जिला जज मनोज गर्ब्याल के हाथों से एडवोकेट विकेश सिंह नेगी हुए सम्मानित -जानिए खबर
देहरादून। जरूरतमंद वकीलों की मदद को तैयार अपर जिला जज के हाथों एडवोकेट विकेश सिंह नेगी (Advocate Vikesh Singh Negi) को सम्मानित किया। बता दें कि एडवोकेट विकेश नेगी ने कोरोना काल में न केवल आम लोगों की मदद की बल्कि बार एसोसिएशन को भी 50 हजार रुपये दान किये ताकि जरूरतमंद नये वकीलों को मदद की जा सके।
बता दें कि इस मौके पर एसोएशन के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल ने एडवोकेट विकेश नेगी के कार्यों की सराहना की। देहरादून बार एसोसिएशन ने गणतंत्र दिवस पर आयोजित एक समारोह में कोरोना काल में समाजसेवा करने वाले अधिवक्ताओं को सम्मानित किया।
अपर जिला जज मनोज गर्ब्याल और एसोसिएशन के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल ने विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने वाले अधिवक्ताओं को सम्मानित किया।
समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश सिंह नेगी को भी इस मौके पर अपर जिला जज ने सम्मानित किया। इस मौके पर अपर जिला जज ने सभी अधिवक्ताओं को गणतंत्र दिवस और वसंत पंचमी की बधाई दी।
उन्होंने कहा कि नए सदस्यों को पढ़ना चाहिए। उन्होंने बार के नये सदस्यों को वकालत के कई टिप्स भी दिये। इस मौके पर सोशल एक्टिविस्ट विकेश सिंह नेगी ने कहा कि कोरोना काल में वकीलों ने समाज के विभिन्न वर्गों की यथासंभव मदद की है।
एडवोकेट विकेश नेगी ने कोरोना काल में न केवल आम लोगों की मदद की बल्कि बार एसोसिएशन को भी 50 हजार रुपये दान किये ताकि जरूरतमंद नये वकीलों को मदद की जा सके।
गौरतलब है कि एडवोकेट विकेश नेगी (Advocate Vikesh Singh Negi) ने कोरोना काल में न केवल आम लोगों की मदद की बल्कि बार एसोसिएशन को भी 50 हजार रुपये दान किये ताकि जरूरतमंद नये वकीलों को मदद की जा सके।
इस मौके पर एसोएशन के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल ने एडवोकेट विकेश नेगी के कार्यों की सराहना की। उन्होंने उम्मीद जतायी कि युवा एडवोकेट विकेश नेगी से अन्य अधिवक्ताओं को भी प्रेरणा मिलेगी।
—————– कुछ most – कोरोना का दर्द भूले नही भुलाया जाता
लेखक के जिंदगी की अंतिम दिन
साथ ही लेखक भी समाज में उत्कृष्ट काम करने वाले बुद्धिजीवी लोगों की सराहना करता है क्योंकि लेखक ने मुसीबतों से लड़ाना सीख लिया है। लेखक भी देहरादून में एक निजी मेडिकल कालेज में कार्य करता था। कोरोना काल चल रहा था और लेखक की तबियत भी बहुत खराब थी कि लेखक को ऐसा लग रहा था कि लेखक के जिंदगी की अब अंतिम दिन है।
स्वास्थ्य इतना खराब… अब जीवन का अंत…
कोरोना काल लगभग सभी लोगों के लिए एक लड़ाई थी जिसमें जीतना मुश्किल था। कोरोना काल से पहले लगभग पांच-छः साल से जब देहरादून के एक निजी मेडिकल कालेज में लेखक ग्राफिक डिजाइन का कार्य करता था। जैसे ही कोरोनाकाल शुरू हुआ लेखक का स्वास्थ्य इतना खराब हो गया कि ऐसा लग रहा था कि अब जीवन का अंत है।
उधर कालेज का कार्य जब कोरोना में सब जगह बंद पड़ा हुआ था तो लेखक स्वास्थ्य खराब होने के कारण कालेज का कार्य करने के लिए जब दबाव बनाया गया तो लेखक खुद अपने रिस्क पर कालेज से कम्प्यूटर उठाकर अपनी कमर में बांधकर अपने घर पर लाया और अपने घर में कालेज का कार्य किया। Advocate Vikesh Singh Negi
के वावजूद डॉल्फिन के चेयरमैन अपने अपर निदेशक से यह कहकर मुझे बाहर कर दिया कि मुझे उसका काम पसंद नही आ रहा है। एक तो स्वास्थ्य इतना खराब कि जिंदगी के अंतिम दिन नजर आ रहे थे उधर चेयरमैन ने अपने अपर निदेशक नाशपाल के मुहं से इतना और कह दिया कि चेयरमैन को आपका काम पसंद नही जो बंधा अपने रिस्क पर कालेज अपनी कमर में कम्प्यूटर बांधकर अपने घर पर काम किया काम देने के बावजूद कोरोना काल में चेयरमैन साहब ने अपने अपर निदेशक से यह कहा दिया कि आप उसको बता दो कि अपना देखो एक महीना का आपको टाईम दिया गया है।
एक तो स्वास्थ्य खराब, दूसरा चेयरमैन का एल्टीमेट – तब पता चला कि जब मुसीबत आती है तो बता के नही आती अब खर्चे की दिक्कतें शुरू। जबकि लेखक किराये के मकान पर रहता है चेयरमैन को पता था, लेखक ने अपने बच्चों का भी एडमिशन स्कूल में चेयरमैन से पूछा कर करवाया था और एडमिशन की फीस को अपने बजट के हिसाब से कम करने को कहा था। इसके बावजूद भी चेयरमैन को जब कि सब पता था कोरोनाकाल चल रहा है, डिजाइनर का स्वास्थ्य खराब है, डिजाइनर ने मुझे पूछकर बच्चों को स्कूल में प्रवेश किया। इस विकट घड़ी में चेयरमैन में सहायता करने की वजय मुझे मरने का छोड़ दिया। बावजूद कोरोना में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी स्पीच में साफ-साफ कहा था कि कोई भी पराईवेट संस्थान अपने कर्मचारियों को उनकी नौकरी से नहीं निकालेंगे व कोई भी मकान मालिक किरायेदारों को किराये के लिए नही परेशान करेगा।
एक महीने बाद मुझे रिजाइन भी ले लिया गया। ताकि भविष्य में यह मेरे व मेरे इंस्टीयट पर कोई आंच न आये। साल का करोड़ों रुपये कमाने वाला, सोने चांदी हीरे मोती का कॉम्लेस चलाने वाला, कालेज में सारे विद्यार्थियों के लिए हॉस्टेल खरीद के रखने वाला कि कालेज के बच्चों एक भी रुपया बाहर न जाने पाये, करोड़ों के हॉस्टेल खरीद कर और बनवाया कर चलाने वाले की बुद्धि और नेहत इतनी घटिया कि मुशीबत के समय अपने ही कर्मचारी को नौकरी से निकल देने कौन सी बुद्धिमानी का काम हैं।
15-20 बच्चे में मुझे सलेक्ट किया गया
जबकि कर्मचारी की सैलरी इतनी भी नही कि लाखों में हो और उसे देने में उस पर चुब रही हो। मात्र 20-22 हजार रूपये में अपनी फटी हुई हालत उसने दिखा दी। वह भी जब उसने मुझे अपने यहां रखा था पहले उसने टेस्ट लिए- डिजाइन बनाये और इस टेस्ट में मैं अकेला बंदा नही था लगभग जब उसने समाचार पत्रों में रिक्वायरमेंट निकाली तो रिक्वारमेंट में एक सीट थी डिजाइनर की। उस सीट के लिए लगभग 15-20 बच्चे आए हुए थे जिनमें से मैं भी एक था। उसमें उसके और उसके निदेशक अरुण कुमार द्वारा टेस्ट पास करने के बाद मुझे सलेक्ट किया गया।
पेपर देते समय लग IAS की चयेर के लिए पेपर.…
पेपर देते समय तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई आईएएस की चयेर के लिए पेपर दे रहा हूं – पहले टेस्ट लिये गये उसके बाद डिजाइन पसंद किये गये, उसके बाद दूसरे दिन इण्टरब्यू हुआ। इण्टरब्यू पहले डायरेक्टर ने लिया फिर उसके बाद चेयरमैन ने खुद लिया एक सप्ताह के बाद फोन आता है कि आपको कालेज के लिए सलेक्ट किया गया आप अपने डॉक्यूमेंट व फोटो कालेज को प्रोबाइट कर दें।
फिर रखा लिया और पांच-छः साल काम करने के बाद बावजूद, पांच-छः के बाद चेयरमैन अपने अपर निदेशक नाशपाल के मुंह से यह कहता है कि सुशील का काम मुझे पसंद नही है। और मेरे से छुपकर बाहर ग्राफिक डिजानर की पोस्ट के लिए रिक्वायरमेंट निकल ली। और मेरे ही सामने मेरी ही पोस्ट के लिए इंटरब्यू करवा लिया।
मेरी तो हालत ही खराब हो गई मैंने ईश्वर का पुकारना शुरू कर दिया। मैने कहा हे भगवान क्या इस सुन्दर सी स्वर्ग के समान पृथ्वी को क्या गलत ही लोग चलाते है। चेयरमैन अपने को दुनिया की नजर में धर्मात्मा दिखाता फिरता। इस मुश्बित में मुझे मदद् की जरूरत थी व पूजा के नाम पर वहां जंगल में उसके यज्ञ चल रहे थे अपने कर्मचारी व जरूरतमंद कर्मचारी को कोई मदद नही, कुछ नही बल्कि उसको नौकरी से भी निकालवा दिया।
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चेयरमैन कितना धर्मात्मा…
बावजूद पूजा के नाम पर लाखों रूपये की होली जंगल में वह देवी के नाम लुटा रहा था बल्कि मूर्तियों भी मंदिर में उसने स्थापित की यहां तक कन्सटे्शन भी उसने वहां करवाया। यह दुनिया व अपने आसपास, पडोस व रिश्तेदारों को दिखाने के लिए कि चेयरमैन कितना धर्मात्मा है।
पैसे ने उसे इतना अंधा कर दिया कि उसको कर्मचारी व उसकी मुसीबत को नजर अंदाज करके अपने धर्मात्मा दिखा दिया। ताकि दुनिया को दिखाना कि इंस्ट्टयूट का चेयरमैन धर्मात्मा है। Advocate Vikesh Singh Negi
पैसे ने उसे इतना अंदा कर दिया है अब वह इतना पाखण्डी हो चुका है कि वह पैसे के बल पर भगवान को भी बिका हुआ समझने लगा है उसकी सोच में भगवान पैसे में बिकते व खरीद जाते है। कहते है ना जब पैसा हद से ज्यादा आ जाये तो बुद्धि काम करना बंद कर देती हैं बुद्धि उल्ल बन जाती है।
भगवान के नाम डोंक रचना व प्रसाद बांट ने से भगवान प्रश्न नही होते
अरे तू क्या खरीदेगा भगवान को तेरी औकात ही कितनी है जिस थाली में खाता है उसी थाली में छेद करने वाले। समझ ले भगवान पैसों में नही खरीदें जाते। भगवान के नाम डोंक रचना व प्रसाद बांट ने से भगवान प्रश्न नही होते। भगवान तेरे द्वारा ईट बजरी के बनाये हुए मकान में या चार दिवारी में नही निवास करते है। अरे मूर्ख भगवान अपने बनाये मंदिर – मनुष्य के हृदय में निवास करते है। तेरे बनाये चार दिवारी में शैतान ही रहता होगा जिसने तेरी अक्कल और बुद्धि पर पर्दा डाल दिया हैं।
भगवान का मंदिर मनुष्य है उसके हाथ में न्याय व अन्याय का तराजू ...
अमीर का भी भगवान है और गरीब का भी भगवान, उसकी निगाएं सभी जगह है वह जरूरतमंद के लिए काम करता है वह निराकार है ज्योतिस्वरूप है और उसका मंदिर मनुष्य है उसके हाथ में न्याय व अन्याय का तराजू है वह किसी को नही पहचानता। उसे पहचानता है जो भावउ सहित उसे पुकारता है और उसकी रीति के अनुसार जीवन जीता है। मनुष्य का जीवन नही है, मनुष्य का जीवन एक यात्रा है, यात्रा पूरी होने पर इंसान को तोला जायेगा।
मैं लेखक – सुशील कुमार अनाथ व बेसहारा नही हू मेरा एक पिता है जो स्वर्ग में है
उसके कर्मों के अनुसार उसके साथ न्याय और अन्याय होगा। न्याय का तराजू मेरे ईश्वर को हाथ है मैं लेखक – सुशील कुमार अनाथ व बेसहारा नही हू मेरा एक पिता है जो स्वर्ग में जो एक दिन जरूर मेरा न्याय करेगा। वही सभी का न्याय करता है। मेरे मुसीबत के दिनों में उसने मेरा साथ दिया उसी ने मुझे ठीक किया और उसी ने मेरे बच्चों की स्कूल की फीस दी। वह जरूरी मेरा न्याय करेगा। क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि न्याय का तराजू परमात्मा के हाथ में है। Advocate Vikesh Singh Negi
जरूरमंदों की मदद करने वालों को ईश्वर गुप्तचर ….
आज जब लेखक जरूरमंदों की मदद करने वालों को ईश्वर गुप्तचर समझता है। आज में जहां कोई समाज के हित व जरूरमंद लोगों की मदद करने वालों को ईश्वर का फरिश्ता समझता हूं।
तेरे वचन मेरा जीवन हो जाय
उस ईश्वर ने मेरे हृदय की पुकार सुनी और आज मैं बहुत ठीक हूं। Advocate Vikesh Singh Negi
चेयरमैन में मेरे लिए अपना दरवाज बंद किया कोई बात नही। ईश्वर ने मुझे मेरे ठीक होने का इंतजार किया और दूसरा दरवाज मेरे लिए खोल दिया।
धन्यवाद। ईश्वर पिता! सबको तेरी आस है। तेरे वचन मेरा जीवन हो जाय। इतनी शक्ति दें।
https://youtu.be/SnOb2Ep5QVk