पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए नियुक्त समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। साथ ही जांच पूरी करने के लिए और समय मांगा है। सूत्रों ने कहा कि शीर्ष अदालत 23 फरवरी को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रवींद्रन समिति की रिपोर्ट पर विचार कर सकती है। अब तक पत्रकार एन राम, सिद्धार्थ वरदराजन और परंजॉय गुहा ठाकुरता समेत 13 लोगों ने समिति के समक्ष अपना पक्ष रखा है। दो लोगों ने अपने मोबाइल फोन फॉरेंसिक जांच के लिए कमेटी को सौंप दिए हैं।
पैनल ने पहले कहा था कि केवल दो लोगों ने फोरेंसिक जांच के लिए अपने मोबाइल फोन इसके साथ जमा किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इजरायली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए पिछले साल अक्टूबर में यह कहते हुए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था कि राज्य को हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ाने पर “मुफ्त पास नहीं मिलेगा” और अदालत “मूक दर्शक” नहीं रहेगी।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया था खुलासा
बता दें कि अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी पड़ताल के हवाले से छापा है कि इजराइल सरकार ने भारत को पेगासस की तकनीक बेची थी। इसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने इजराइल के साथ करीब 2 बिलियन अमरीकी डॉलर की हुई डिफेंस डील के तहत साल 2017 में इजरायली स्पाइवेयर पेगासस और एक मिसाइल प्रणाली खरीदी थी। रिपोर्ट में जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजराइल यात्रा का भी उल्लेख किया गया है, इस यात्रा के बाद इजरायल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बने थे। इसी रिपोर्ट के आधार पर शर्मा ने मांग की है कि सौदे के लिए संबंधित अधिकारी या प्राधिकरण के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कराई जाए।
पेगासस को इसराइल की साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ने तैयार किया है। बांग्लादेश समेत कई देशों ने पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है। इसे लेकर पहले भी विवाद हुए हैं। मेक्सिको से लेकर सऊदी अरब की सरकार तक पर इसके इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं। व्हाट्सऐप के स्वामित्व वाली कंपनी फेसबुक समेत कई दूसरी कंपनियों ने इस पर मुकदमे किए हैं।
हालांकि, एनएसओ ने पहले खुद पर लगे सभी आरोपों को खारिज किए हैं। ये कंपनी दावा करती रही है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य “आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना” है। हालिया आरोपों को लेकर भी एनएसओ ने ऐसे ही दावे किए हैं। सरकारें भी जाहिर तौर पर बताती हैं कि इसे खरीदने के लिए उनका मकसद सुरक्षा और आतंकवाद पर रोक लगाना है, लेकिन कई सरकारों पर पेगासस के ‘मनचाहे इस्तेमाल और दुरुपयोग के गंभीर’ आरोप लगे हैं।
बता दें, द वायर की रिपोर्ट में बताया गया है कि कांग्रस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो केंद्रीय मंत्री, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और 40 भारतीय पत्रकार जासूसी के संभावित टारगेट थे। यह लिस्ट भारत की एक अज्ञात एजेंसी की है, जो कि इयरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का स्पाइवेयर Pegasus यूज करती है। एनएसओ का कहना है कि यह अपना Pegasus स्पाइवेयर केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को ही आतंक से लड़ने के मकसद से देती है। किसी भी प्राइवेट कंपनी को यह स्पाइवेयर नहीं दिया जाता है।
हालांकि, भारतीय सरकार ने इसमें अपनी भूमिका से साफ इनकार किया था। वहीं, कांग्रेस समेट विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरती रही हैं। कांग्रेस ने इसे लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस्तीफे की मांग तक की थी। साथ ही इसमें पीएम मोदी की भूमिका की जांच की मांग भी की थी।
भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के फोन नंबर उस लीक डाटाबेस में पाए गए हैं, जिन्हें इजरायली स्पाईवेयर पेगासस Pegasus के इस्तेमाल से हैक किया गया है। द वायर सहित 16 मीडिया संस्थानों की पड़ताल में यह जानकारी सामने आई है। प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि लीगल कम्यूनिटी मेंबर्स, बिजनेसमैन, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं और अन्यों के नंबर इस लिस्ट में शामिल हैं। इस लिस्ट में 300 से ज्यादा भारतीय मोबाइल नंबर हैं। हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस सहित बड़े मीडिया संस्थानों के बड़े पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया है।
द वायर (The Wire) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा आम चुनावों से पहले 2018 और 2019 के बीच ज्यादातर को निशाना बनाया गया। पेगासस को बेचने वाली इजरायली कंपनी NSO ग्रुप का दावा है कि वह अपने स्पाईवेयर केवल अच्छी तरह से जांची-परखी सरकारों को ही ऑफर करती है।
पेगासस को बनाने वाले एनएसओ ग्रुप ने अपनी ट्रांसपेरेंसी और रिस्पॉसिबिलिटी रिपोर्ट 2021 में कहा है कि इसके उत्पाद सार्वजनिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से सत्यापित सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के लिए ही बने हैं। कंपनी कहती है कि हम पेगासस का लाइसेंस केवल स्वीकृत, सत्यापित और अधिकृत सरकारों और सरकारी एजेंसियों को देते हैं। विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रमुख कानूनी जांच में उपयोग किए जाने के लिए।
पेगासस को इज़राइल स्थित साइबर इंटेलिजेंस और सुरक्षा फर्म NSO ग्रुप की ओर से विकसित किया गया था। माना जाता है कि यह स्पाइवेयर 2016 से ही मौजूद है और इसे क्यू सूट और ट्राइडेंट जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी उत्पादों में सबसे परिष्कृत माना जाता है। यह ऐप्पल के मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड डिवाइसों में घुस सकता है। पेगासस का इस्तेमाल सरकार की ओर से लाइसेंस के आधार पर किया जाना था। मई 2019 में, इसके डेवलपर ने सरकारी खुफिया एजेंसियों और अन्य के लिए पेगासस की