मानव अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के ऐसे मूलभूत अधिकार हैं, जो किसी भी मनुष्य के लिए सामान्य जीवन जी सकने के लिए आवश्यक होते हैं, मानव अधिकारों का लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति को समाज में सभी के साथ सहजता और खुशी के साथ जीवन व्यतीत करने के लायक बनाना है। मानव अधिकार वास्तव में वे सभी अधिकार हैं जो किसी को भी मानव होने के नाते मिलने चाहिए। सभी व्यक्तियों को भूख, बीमारी, लाचारी, कुपोषण, दमन से सुरक्षा चाहिए। सभी को घर, नौकरी तथा समाज में शांतिपूर्ण ढंग से रहने और काम करने हेतु संरक्षण चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को यह सब मिले और वह मानवीय गरिमा के साथ समानता एवं स्वतंत्रातापूर्वक जी सके, यही मानव अधिकार हैं।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा सितम्बर 2012 में जारी की गई अधिसूचना के तहत उत्तराखण्ड में मानव अधिकारों की स्थापना और सुरक्षा के लिए ‘उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग’ का गठन किया गया है। दिनांक 03 अगस्त 2012 को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजेश टंडन को सर्वप्रथम एकल सदस्यीय आयोग का सदस्य बनाया गया। तत्पश्चात दिनांक 13 मई 2013 को पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं वर्तमान में हरियाणा मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री विजेन्द्र जैन, को उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग का भी अध्यक्ष बनाया गया।
कृत्य एवं शक्तियां
उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग को राज्य स्तर पर वे सभी शक्तियां प्राप्त हैं जो ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ को मिली हुई हैं, इसके साथ ही ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ भी उसके समक्ष लंबित शिकायत आयोग के अधिनियम के अनुसार निपटारे के लिए भेज सकता है।
मानव अधिकारों के हनन की शिकायतों का निवारण करना और उन शिकायतों की जांच-पड़ताल करना, ‘राज्य मानव अधिकार आयोग’ के मुख्य कार्य हैं।
शिकायत निवारण एवं जांच
- आयोग पीड़ित द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अथवा किसी न्यायालय के निर्देश या आदेश पर हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में शिकायत प्राप्त कर सकता है या फिर पीड़ित व्यक्ति स्वयं आयोग के कार्यालय में आकर अपनी शिकायत दे सकता है या पोस्ट, पफैक्स अथवा ई-मेल से भी अपनी शिकायत भेज सकता है।
- शिकायतों के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अपनी शिकायत के संबंध में सूचना प्राप्त करने के लिए कोई भी आवेदक आयोग के कार्यालय से संपर्क कर सकता है।
- सभी शिकायतों पर कार्यवाही राज्य मानव अधिकार आयोग के विधि प्रभाग द्वारा की जाती है। शिकायत प्राप्त होने पर शिकायत का विवरण दर्ज करके उन पर पफाईल संख्या दी जाती है और शिकायतकर्ता को पावती भेजी जाती है।
- ‘उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग’ मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों पर संबंधित अधिकारियों को नोटिस भेजता है और उनसे विस्तृत रिपोर्ट मंगवाता है या आयोग के जांच प्रभाग के अधिकारियों के दल द्वारा घटना स्थल पर जाकर तथ्यों की जांच करने के अधिकार रखता है।
- आयोग शिकायतों का निपटारा करने के लिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दे सकता है। उसे दीवानी न्यायालय की तरह गवाहों को बुलाने, उन्हें हाजिर करवाने, शपथ-पत्रा पर उनका परीक्षण करने, किसी दस्तावेज का पता लगाने और उन्हें पेश करने व गवाहों या दस्तावेजों की जांच के आदेश जारी करने का अधिकार है।
अगर जांच के पश्चात आयोग को पता चले कि मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है या मानव अधिकारों के उल्लंघन को रोकने में सरकारी कर्मचारी द्वारा लापरवाही बरती गई है तो आयोग राज्य सरकार को सिफारिश कर सकता है कि शिकायतकर्ता या पीड़ित को या उसके परिवार के सदस्यों को मुआवजा या क्षतिपूर्ति दे और संबंधित व्यक्तियों के खिलापफ मुकदमा या अन्य कोई उचित कानूनी कार्यवाही करे, जिसे आयोग उपयुक्त समझता है।
मानव अधिकार प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। ये अधिकार अनेक रूपों में विभिन्न स्तर पर व्यक्ति विशेष एवं समाज को प्रभावित करते हैं। वर्तमान में मानव अधिकार हनन से संबंधित मुख्य विषय निम्न हैंः-
1. बालश्रम
2. बच्चों का अवैध व्यापार
3. बच्चों की गुमशुदगी की बढ़ती घटनाएं
4. बच्चों का शारीरिक शोषण एवं उनके प्रति यौन हिंसा
5. बाल-विवाह
6. अपराधी बच्चों और किशोरों के लिए न्याय की समुचित व्यवस्था
1. कन्या भू्रण हत्या
2. महिलाओं का अवैध व्यापार
3. उपेक्षित एवं बेसहारा महिलाओं का पुनर्वास
4. कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न
5. महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा
6. दहेज प्रथा
7. महिलाओं का पैतृक सम्पत्ति अधिकार
8. महिलाओं मंें अशिक्षा की समस्या
उपेक्षित वर्गों से संबंधित मुख्य मानव अधिकार विषय
1. बंधुवा मजदूरी
2. छुआछूत एवं अस्पृश्यता की प्रथा
3. सिर पर मैला ढ़ोने की प्रथा
4. पुनर्वास की समस्या
5. बुजुर्गों के गरिमापूर्वक जीवन जीने के अधिकार को सुरक्षित करने की समस्या
6. स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को प्रदान करने की समस्या
इस प्रकार मानव अधिकारों का क्षेत्रा बहुत व्यापक है। समाज के समग्र विकास के लिए बच्चों, महिलाओं, बुुजुर्गों एवं उपेक्षित वर्गों का विकास बहुत जरूरी है।
भारत मंे न्यायपालिका ने मानव अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भी सरकारी तंत्रा द्वारा या किसी भी संस्था द्वारा या व्यक्ति विशेष द्वारा मानव के मौलिक अधिकारों या मानव अधिकारों को क्षति पहंुचाई गयी या शक्ति के दुरूपयोग द्वारा मौलिक अधिकारों को निलंबित किया गया, तब न्यायपालिका ने हस्तक्षेप करके उन अधिकारों की सुरक्षा की है।
कानून पुलिस को कुछ निश्चित परिस्थितियों में लोगों को गिरफ्तार करने और यदि आवश्यक हो तो ऐसा करने के लिए बल प्रयोग का अधिकार देता है, परन्तु गिरफ्तारी से व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती है। हमारी शासन प्रणाली में ऐसा कोई प्रावधन नहीं है जिसमें अनावश्यक गिरफ्तार किए गए लोगों को मुआवजा प्रदान किया जा सके। अनावश्यक गिरफ्तार ी को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने ‘डी.के. बासु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य’ से संबंधित वाद में कुछ दिशा-निर्देश पुलिस को दिये। यह मानव अधिकारों की सुरक्षा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम था। सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न मुख्य निर्देश दिएः-
- गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की पहचान, उसके नामपट्ट और पद द्वारा स्पष्ट होनी चाहिए।
- पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी व्यक्ति को गिरफ्तारी से संबंधित संपूर्ण विवरण व गिरफ्तारी के कारण के संबंध में पूर्ण जानकारी देगा।
- पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति संबंधी, रिश्तेदार या मित्रा को उसकी गिरफ्तारी तथा उसे गिरफ्तार कर रखे गये स्थान के बारे में तुरंत सूचना देगा।
- पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति और उसकी गिरफ्तारी के संबंध में समस्त सूचना पुलिस स्टेशन में रखी ‘डेली डायरी’ पुस्तक में दर्ज करेगा।
- पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के समय यदि गिरफ्तार व्यक्ति के शरीर पर चोटे हैं तो उनका विवरण दर्ज करेगा और गिरफ्तार व्यक्ति का चिकित्सकीय परीक्षण करायेगा।
- किसी भी महिला को सूर्यास्त से सूर्योदय के मध्य गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। (अपवाद परिस्थितियों को छोड़कर)।
- महिला को गिरफ्तार करते समय महिला पुलिस अधिकारी का साथ होना जरूरी है और महिलाओं की तलाशी केवल महिला पुलिस द्वारा ही की जानी चाहिए।
- गिरफ्तार व्यक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन या उसकी परेड निकालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सम्पर्क सूत्र
उत्तराखण्ड का प्रत्येक निवासी अपने मानव अधिकारों के हनन की शिकायत निःसंकोच उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष को या आयोग के विधि-विभाग को, आयोग के निम्न कार्यालय में दे सकता है अथवा शिकायत डाक, पफैक्स या ई-मेल के द्वारा भेजी जा सकती है।
शिकायत पत्रा के साथ शपथ-पत्रा देना उचित होगा।
आयोग का कार्यालय
उत्तराखण्ड मानव अधिकार आयोग
1-सी लक्ष्मी रोड, डालनवाला देहरादून
पफोनः 0135-2710482, 2713100