नियाज़ी भाइयों के कव्वाली और सूफी गीत (Sufi Songs) ने देहरादून के लोगो को मंत्रमुग्ध किया
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विरासत में कुमार मर्दूर द्वारा शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया गया
विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के ’विरासत साधना’ कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने कथक और भरतनाट्यम के माघ्यम से घुंगरू की थाप, शिव स्तुति, गणेश एवम शिव आराधना, पनघट पे छेड़छाड नृत्य प्रस्तुत कियें
देहरादून: विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के पांचवे दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ में देहरादून के अलग-अलग विद्यालयों के बच्चो ने प्रतिभाग किया एवं कार्यक्रम की शुरुवात शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुति सूफी गीत (niazi brothers) से हुई जिसमें बच्चो ने अदभुद प्रस्तुति देकर बैठे दर्शक का मन जीत लिया। कार्यक्रम की शुरुवात में झंकार नृत्य विद्यालय की छात्रा रितिका गुलाटी ने कथक में सुंदर प्रस्तुति दी, जिसमे उन्होंने मनोरमा नेगी (निर्देशन) नुतम भट्ट (वोकल एवम हारमोनियम), हेमंत मिश्र कांथा (तबला), श्रृष्टि एवम अनन्या( बदनी) के साथ अदभुद जुगलबंदी कर अपनी घुंगरू की थाप से सबको मंच की ओर आकर्षित कर लिया। उसके बाद की प्रस्तुति में उपल्बधी रावत (दून इंटरनेशनल स्कूल) ने कथक में शिव स्तुति प्रस्तुत किया ।
इसी प्रकर विशाल सिंह ( संत कबीर एकेडमी ) से गणेश एवम शिव आराधना में सुंदर प्रदर्शन किया। अनवेसा रावत (समर वैली स्कूल) ने कथक (पनघट पे छेड़छाड) में अपनी कला का प्रदर्शन किया।उसके बाद दिव्यानी चौहान (डीएवी पब्लिक स्कूल) कथक में और अंत में रवीना भंडारी (फिलफोर्ट स्कूल) भरतनाट्यम का प्रदर्शन कर कार्यक्रम का समापन किया । प्रशंसा के स्वरूप में (कॉर्डिनेटर रीच साधना) कल्पना जी ने उन्हें सर्टिफिकेट द्वारा सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में कुल 12विध्यालय एवम विश्वविद्यालय के 12 बच्चों ने प्रतिभाग किया।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं कुमार मर्दूर द्वारा शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया गया एवं उन्होंने राग शुद्ध कल्याण, राग दरवाड़ी कान्हड़ा, राग यमन पर अपनी प्रस्तुति दी । अपनी प्रस्तुति का समापन उन्होने एक भजन के साथ किया। उनके संगत में हारमोनियम में पारोमिता एवं तबले में शुभ महराज मैजुद रहे।
धारवाड़ की समृद्ध परंपराओं से ताल्लुक रखने वाले कुमार मर्दूर ने अपने पिता पंडित सोमनाथ मर्दुर से प्रशिक्षण लिया है, जो किराना घराने के एक प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक हैं। जो पद्मभूषण डॉ. पुत्तराज गवईजी और पद्मभूषण डॉ. बसवराज राजगुरुजी के वरिष्ठ शिष्य थे। कुमार को किराना घराने के महान उस्ताद और स्वर्गीय सवाई गंधर्व के सबसे वरिष्ठ शिष्य स्वर्गीय डॉ पंडित फिरोज दस्तूरजी से सीखने का अवसर मिला। कुमार ने कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ से संगीत में मास्टर्स डिग्री पूरी की है। वह पूरे भारत और विदेशों में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रहे है। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से एक स्वीकृत कलाकार हैं और उनके माध्यम से नियमित रूप से अपनी प्रस्तुति देते रहते है।
आकाशवाणी और दूरदर्शन के एक श्रेणीबद्ध कलाकार, उन्होंने 2011 में सवाई गंधर्व महोत्सव सहित देश भर में कई प्रदर्शन किए हैं। कुमार के रास्ते में आने वाली कई प्रशंसाओं में पद्मविभूषण डॉ 2010 में, मल्लिकार्जुन मंसूर युवा पुरस्कार धारवाड़, डॉ वसंतराव देशपांडे मेमोरियल युवा कलाकार पुरस्कार 2007, पुणे विद्यासागर पुरस्कार 2006। गंधर्व महाविद्यालय, पुणे से युवा गायक पुरस्कार और कई छात्र और युवा समारोहों और प्रतियोगिताओं में पुरस्कार। सुरीली आवाज से संपन्न, वे रागों की शुद्ध और सौंदर्य प्रस्तुति, क्रिस्टल स्पष्ट तान पैटर्न और लय पर कमान के लिए जाने जाते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में रामपुर घराने के प्रसिद्ध ’नियाज़ी ब्रदर्स’ द्वारा कव्वाली और सूफी गीत प्रस्तुत किये गए। जिसमे नियाज़ी ब्रदर्स पारंपरिक कव्वाली से अपनी प्रस्तुति शुरू किया ’काबे मे तेरा जल्वा, काशी मे नाजारा ये घर भी हमारा वो भी हमारा’ वही हजरत अमीर खुसरो का लिखा हुआ कव्वाली ’तोरी सुरत के बल्हारी निजाम’ फिर उन्होने ’मन लागो यार फकिरि में’ के साथ-साथ पंजाबी एवं बॉलीवुड से भी कुछ कव्वाली प्रस्तुत किया। सहयोगी कलाकारों में माजिद नियांजी और मुकर्रम नियाजी वोकल में वहीं वासिफ नियाजी ढोलक पर, विजय कुमार तबला और अनील की बोर्ड पर संगत दिया।
शाहिद नियाज़ी और सामी नियाज़ी (नियाज़ी ब्रदर्स) जो अपने संगीत के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है एवं वे कव्वाली के रामपुर घराने की 250 साल पुरानी पारिवारिक परंपरा को जारी रखे हुए हैं। उस्ताद नियाज़ी ने कव्वाली को “रूह-ए-ग़िज़ा“ के रूप में वर्णित किया है।
कव्वाली 13वीं शताब्दी में भारतीय, फारसी, तुर्की और अरबी संगीत परंपराओं के श्मिश्रण से बनी। दिल्ली के सूफी संत अमीर खुसरो देहलवी जो सूफियों की चिश्ती धराने से सबंध रखते थे। कव्वाली के केंद्र में प्रेम और परमात्मा कि भक्ति होती है।
दिनांक-14 अक्टूबर 2022 के सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुबह 11:00 बजे- क्राफ्ट वर्क शॉप विद मास्टर क्राफ्ट्समैन, शाम 7:00 बजे कत्थक नृत्य ’दिव्या गोस्वामी’ के द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा एवं शाम 8:00 बजे हिंदुस्तानी वोकल ’अश्विनी भीदे’ कि प्रस्तुतियां होंगी।
09 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022 तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है।
इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।
रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था।
विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है। विरासत 2022 आपको मंत्रमुग्ध करने और एक अविस्मरणीय संगीत और सांस्कृतिक यात्रा पर फिर से ले जाने का वादा करता है।