देहरादून। श्रीमद्भागवत वह ज्ञान है, जिसे अर्जित कर नास्तिक भी कर्म के पथ पर बिना किसी बाधा के चल पड़ता है। श्रीमद्भागवत के ज्ञानामृत से पापी एवं लोभी भी हर प्रकार की बुराई छोड़ कर अच्छे कर्मों का आलम्बन थाम लेते हैं। यह बात आचार्य बृज मोहन मैथाणी ने अपर सारथी विहार, धर्मपुर में 29 मार्च से प्रारम्भ श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन श्रद्धालुओ को सम्बोधित करते हुए कही।
श्री बृजमोहन दरमोडा की धर्मपत्नी स्व. रूपवती देवी दरमोडा की स्मृति में आयोजित अपर सारथी विहार में दरमोडा निवास में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।
कथा के दौरान जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण जन्म का प्रसंग आया, समूचा पंडाल श्रद्धा के सागर में डूब गया। “नन्द के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की” के जयकारों से पंडाल गूंज उठा। कथा वाचक आचार्य बृज मोहन मैथाणीं ने क्रमवार सुबह से लेकर शाम तक श्रोताओ को कथा का रसपान कराया। उन्होंने शनिवार को कथा का सार बताते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार व पृथ्वी को दैत्य शक्तियों से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र में हुआ।
भगवान कृष्ण ने संसार को अंधेरे से प्रकाश में लाने के लिए जन्म लिया और अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञानरूपी प्रकाश से दूर किया। भगवान कृष्ण को जब वासुदेव यशोदा मैया के घर लेकर जा रहे थे तो शेषनाग ने छाया की और मां यमुना ने चरण छुए। वासुदेव कृष्ण को नंदबाबा के घर छोड़कर यशोदा मैया की कन्या को लेकर वापस कंस के कारागृह में आए। कथा के यजमान भूपेंद्र दरमोडा और हरीश चन्द्र दरमोडा द्वारा भागवत कथा के सफल आयोजन में अनेक श्रौता मौजूद थे । कथा का पारायणं 5 अप्रैल को होगा।